बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरणसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण
प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
उत्तर -
सर्वस्यै - चतुर्थी के एकवचन में 'डे' प्रत्यय, 'सर्वा + डे' यहाँ पर 'याँ डापः' से याट् प्राप्त था। परन्तु उसे बाधकर 'सर्वानाम्नः स्यादस्वश्च' इस सूत्र से 'स्याट्' का आगम तथा आकार को ह्रस्व हो जाता है। सर्वस्या + ए यहाँ पर वृद्धि होकर 'सर्वस्यौ' रूप बनता है।
सर्वस्याः - स पंचमी के एकवचन में ङसि प्रत्यय, सर्वा + अस्, इस दशा में 'सर्वनाम्नः स्याङ्द्रस्वश्च से स्पाट् का आगम, आकार को ह्रस्व, सवर्णदीर्घ और सकार को रुत्वविसर्ग होकर 'सर्वस्या:' रूप बनता है। इसी प्रकार षष्ठी के एकवचन मंच 'सर्वस्याः' रूप बनेगा।
सर्वासाम् - षष्ठी के बहुवचन में 'आम्' प्रत्यय, 'सर्वा + आम्' इस दशा में 'आमि सर्वनाम्नाः' 'सुट्' से 'सुट' आगम होकर 'सर्वासाम्' रूप बनता है।
सर्वस्याम् - सप्तमी के एकवचन में 'ङि' प्रत्यय, सर्वा + ङि' इस अवस्था में 'ङे राम्नद्याम्नीभ्यः' से ङि को 'आम्', सर्वनाम्नः स्याङ्गस्वश्च' से स्याट् का आगम और आकार को ह्रस्व होकर 'सर्वस्याम्' रूप बनता है।
मत्यै - चतुर्थी के एकवचन में 'डे' प्रत्यय, मति + ए (डे) यहाँ 'ङितिह्रस्वश्य' से विकल्प से नदीसंज्ञा होती है। नदीसंज्ञा होने पर 'आद्या' से आट् का आगम होता है 'आटश्च' में वृद्धि तथा इकार को यण् होने से 'मत्यै' रूप बनता है।
मतये - नदीसंज्ञा के अभाव पक्ष में घिसंज्ञा होगी। तब 'घेर्डिंति' से गुण होगा। ततश्च 'एचोऽयवायावः' से एकार को अय् आदेश होगा।
मत्याः - पञ्चमी के एकवचन में ङसि प्रत्यय, ङसि में अस् शेष रहता है। 'मति + अस्' यहाँ 'ङिति ह्रस्वश्च' से नदीसंज्ञा, 'आणद्या:' से आट का आगम्, 'आटश्च' से वृद्धि, यण् रुत्व और विसर्ग कार्य होकर 'मत्याः ' रूप बनता है।
मतेः - नदीसंज्ञा के अभाव पक्ष में घिसंज्ञा, गुप्ण और 'डिसिङसोश्च' से अकार का पूर्वरूप, सकार का रुत्व- विसर्ग होता है।
(षष्ठी के एकवचन में 'ङस्' प्रत्यय शेष कार्य पञ्चमी के एकवचन की तरह होते हैं।)
मत्याम् - सप्तमी के एकवचन में 'ङि' प्रत्यय, 'मति + ङि' यहाँ 'ङिति ह्रस्वश्च' से नदीसंज्ञा होने से 'इदुद्भ्याम्' सूत्र से ङि को आम आदेश होता है। इकार को यण् होकर 'मत्याम्' रूप सिद्ध होता है।
मतौ - नदीसंज्ञा के अभाव पक्ष में घिसंज्ञा होने से 'ङि' को 'औ' और इकार को अकार 'अच्च घे' सूत्र से होता है। तब 'मत + औ' इस दशा में वृद्धि होकर 'मतौ' रूप बनता है। (शेषमिति शेष रूप हरि' शब्द के समान बनेंगे।)
वारि - प्रथमा के एकवचन में 'सु' प्रत्यय, वारि + सु यहाँ ' स्वमोर्नपुंसकात्' सूत्र से 'सु' का लोप हो जाने से 'वारि' रूप सिद्ध होता है।
(इसी प्रकार द्वितीया के एकवचन में भी अम् का लोप हो जाता है।)
वारिणी - प्रथमा के द्विवचन में 'औ' प्रत्यय, 'वारि + औ' यहाँ 'नपुंसकाच्च से औ को शी (ई) आदेश हो जाता है। तत्पश्चात् 'इकोऽचिविभक्तौ से नुम् (न्) का आगम होता है। 'वारिन् + ई ऐसी दशा में 'अट्कुप्वाङ्नुम्व्यवायेऽपि से नकार को णकार होकर 'वारिणी' रूप बनता है।
वारीणि - प्रथमा के बहुवचन में 'जस्' प्रत्यय, यहाँ 'जश्शसोः शि' से जस् को 'इ' (शि) आदेश हो जाता है। 'शिसर्वनामस्थानम्' से 'शि' की सर्वनामस्थान संज्ञा हो जाने से 'नपुंकस्य झलचः' से नुमागम हो जाता है। 'वारिन् इ' इस दशा में 'सर्वनामस्थाने-से उपधादीर्घ और णत्व होकर 'वारीणि' रूप बनता है।
हे वारे, हे वारि - 'हे वारि + सु इस दशा में 'सु' का लोप होने पर 'प्रत्ययलोपे प्रत्ययलक्षणम्' इस नियम से लुप्त + सु + प्रत्यय निमित्तक गुण प्राप्त होता है 'नलुमतांगस्य' निषेध कर देता है। परन्तु यह सूत्र नित्य नहीं है। अतः जब इसकी प्रवृत्ति होगी, तब गुण कार्य न होकर 'हे वारि रूप बनेगा। तथा जब इसकी प्रवृत्ति नहीं होती है तब 'ह्रस्वस्य गुणः' से गुण होकर 'हे वारे रूप बनता है।
(आंगोनेति 'वारि + टा' यहाँ 'आँगो ना' से 'टा' को 'ना' हो जायेगा।)
वारिणा - तृतीया के एकवचन में 'टा' प्रत्यय 'वारि + टा' यहाँ आङोनाऽस्त्रियाम्' से 'टा' को 'ना' आदेश 'अट्कुप्वाङ्नुम्व्यवायेऽपि से 'णत्व' होकर उक्त रूप बनता है।
वारिणे - चतुर्थी के एकवचन में 'डे' (ए) प्रत्यय, 'वारि + ए यहाँ 'घेर्डिति' से गुण प्राप्त होता है परन्तु 'वृद्धयौत्वतृज्वभावगुणोभ्यो पूर्वविप्रतिषेधेन से पूर्वविप्रतिषेध के कारण 'इकोऽचि विभक्तौ' से नुम् (न्) आ आदेश होता है। अब 'वारिन् + ए यहाँ 'अट्कुप्वाङ्' से णत्व होकर 'वारिणे' रूप बनता है।
वारिणः - यह पञ्चमी और षष्ठी के एकवचन का रूप है अतः 'ङसि, ङस्' प्रत्यय आते हैं। यहाँ भी 'घेर्डिति' से प्राप्त गुण का पूर्वविप्रतिषेध होने के कारण नुम्, णत्व तथा रुत्वविसर्ग होता है। अतः 'वारिणः' रूप बनता है।
वारिणो:- यह षष्ठी और सप्तमी के द्विवचन का रूप है। यहाँ 'ओस्' प्रत्यय आता है। 'वारि + ओस्' इस दशा में परत्व के कारण 'इकोयणचि' को बाधकर नुम् (न्) का आगम होता है। नकार को 'णत्व' तथा रुत्व - विसर्ग होकर उक्त रूप बनता है।
वारीणाम् - षष्ठी के बहुवचन में 'आम्' प्रत्यय, 'वारि + आम्' यहाँ 'इकोऽचि विभक्तौ' से प्राप्त नुम् को बाधकर 'ह्रस्वनद्यापो नुट् से नुट् (न्) होता है। तब 'नामि' से दीर्घ और णत्व कार्य होकर उक्त रूप सिद्ध होता है।
वारिणि - सप्तमी के एकवचन में 'ङि' प्रत्यय, वारि + इ (ङि) यहाँ भी 'अच्च घे:' सूत्र से प्राप्त 'ङि' को 'औ' और इकार के अकार को बाधकर 'इकोऽचि विभक्तौ से नुम् तथा णत्व होकर उक्त रूप बनता है।
'सर्वा' शब्द की सम्पूर्ण रूपमाला
विभक्ति | एक वचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | सर्वा | सर्वे | सर्वाः |
द्वितीया | सर्वाम् | सर्वे | सर्वाः |
तृतीया | सर्वया | सर्वाभ्याम | सर्वाभिः |
चतुर्थी | सर्वस्यै | सर्वाभ्याम | सर्वाभ्यः |
पञ्चमी | सर्वस्याः | सर्वाभ्याम | सर्वाभ्यः |
षष्ठी | सर्वस्याः | सर्वयोः | सर्वासाम् |
सप्तमी | सर्वस्याम | सर्वयोः | सर्वासु |
सम्बोधन | हे सर्वे | हे सर्वे | हे सर्वाः |
'मति' शब्द की सम्पूर्ण रूपमाला (स्त्रीलिंग)
विभक्ति | एक वचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | मतिः | मती | मतयः |
द्वितीया | मतिम् | मती | मती: |
तृतीया | मत्या | मतिभ्याम् | मतिभिः |
चतुर्थी | मत्यै,मतये | मतिभ्याम् | मतिभ्यः |
पञ्चमी | मत्याः, मतेः | मतिभ्याम् | मतिभ्यः |
षष्ठी | मत्याः, मतेः | मत्योः | मतीनाम् |
सप्तमी | मत्याम्, मतौ | मत्योः | मतिषु |
सम्बोधन | हे मते ! | हे मती ! | हे मतयः ! |
'वारि' शब्द की सम्पूर्ण रूपमाला (नपुंसकलिंग)
विभक्ति | एक वचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथमा | वारि | वारिणी | वारीणि |
द्वितीया | वारि | वारिणी | वारीणि |
तृतीया | वारिणा | वारिभ्याम् | वारिभिः |
चतुर्थी | वारिणे | वारिभ्याम् | वारिभ्यः |
पञ्चमी | वारिणः | वारिभ्याम् | वारिभ्यः |
षष्ठी | वारिणः | वारिणोः | वारीणाम् |
सप्तमी | वारिणि | वारिणोः | वारिषु |
सम्बोधन | हे वारि, हे वारे ! | हे वारिणी ! | हे वारीणि ! |
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- प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
- प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
- प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
- प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
- प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
- प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
- प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
- प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
- प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
- प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
- प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
- प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
- प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
- प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
- प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
- प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
- प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
- प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
- प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)